Sunday, 2 March 2014

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कभी चंचल  शौख़  हसीना 
कभी करती सबको पसीना पसीना 

कभी चिड़िया चेहकी चेहकी  सी 
कभी गुडिया बेहकी बेहकी सी 

पल में सबको हँसाने वाली 
छट से कभी रुलाने वाली 

कभी समझदार सयानी सी 
कभी लगती गुड़िया रानी सी 

लड़ते-लड़ते हसने वाली 
हँसते हँसते खोने वाली 

सबसे घुलने-मिलने वाली 
अकेले मे भी खुश रहने वाली

एक दिन ससुराल को जाउंगी
वहाँ भी ख़ुशियाँ लुटाऊँगी 


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