Wednesday, 5 November 2014

बस यूँ ही...

बस यूँ ही आज मन हुआ कुछ लिखने का
किस्से कहानी गढ़ने का 

कितने दिन बीते कुछ लिखा नहीं 
मन को हल्का किया नहीं 

अब रोज ही किस्से होते हैं 
हर रोज कहानी बनती हैं 

राजा किसी और का होता है 
किसी और की रानी होती है 

हर रोज एक नया फ़लसफ़ा लिखा जाता जाता है
हर रोज नए मयखाने खुलते हैं

सवाल तो बस इतना है 
जब अंत नही तो शुरुआत है कैसी 

ना खेलो किसी के ज़ज्बातों से इतना की 
उसके सीने में कोई ज़ज्बात ना रहे 

Play with toys not with feelings

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