Tuesday, 6 March 2012

Dilon ki doori

कोई पास होकर भी पास नहीं होता
कोई कभी साथ होकर भी साथ नहीं होता
कहने को तो मिलते हैं हज़ारो लोग
लेकिन हर कोई दिल को ख़ास नहीं होता


ऐ दिल तू समझने की कोशिश तो कर
साथ चलने की हिम्मत तो कर
जिंदगानी भी चल पड़ेगी यूँ ही
तू अतीत से निकलने की चाहत तो कर


तेरा दर्द इतना बढ़ गया है की
गैरों के भी आसुँ आ जाते हैं
समझ में ये नहीं आ पाता
कैसे लोग तुझे तोड़ जाते हैं


ये प्यार भी कैसे-कैसे काम करवाता है
कैसे किसी को देवदास बनाता है
फिर बाद में वो रो-रो कर
बस पारो-पारो चिल्लाता है

सम्भल जा ऐ दिले-नादाँ
नहीं हैं वो तेरे अपने
मत देख लेना कभी भूलकर भी
पुरे न हो सकने वाले हसीन सपने


उन सपनो के और दिल के
टूटने की आवाज नहीं होती
पर जब चुभती हैं उसकी फ़ासें दिल में
तब कोई फरियाद पूरी नहीं होती

किसी से की हुई वफाओं का
ये अंजाम हुआ
वो निकल गया पतली गली से
मैं सरेआम बदनाम हुआ


मेरे दिल के आशियाने को
इस कदर से रौंद गए हैं वो
की मुसाफिरों का रहना भी
नामुमकिन है अब तो


दिलों की दुरी मीलों में नहीं मापी जाती
दिल जब मिल जाते हैं तो साँसे भी नज़र नहीं आती